आईवीऍफ़ फेल होने के क्या कारण हैं
आईवीऍफ़ यानी कि इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (In Vitro Fertilization) एक ऐसी चिकित्सा तकनीक है जिसकी मदद से बांझपन (infertility) की परेशानी से जूझ रहे जोड़ो को माँ बाप बनने का अवसर प्राप्त होता हैं । पिछले कई सालों में ऐसे जोड़ो के ईलाज में बड़ी सफलता प्राप्त हुई है। इस तकनीक की सफलता का प्रतिशत काफी ज्यादा है | आमतौर पर आईवीएफ के उपयोग से सकारात्मक परिणाम ही मिलते हैं लेकिन कभी-कभी लोगों के हाथ निराशा ही आती है
अंडे या एग की गुणवत्ता अच्छी नहीं होना
यह एक गलतधारणा है कि केवल पत्नी की उम्र महत्वपूर्ण है जबकि बहुत से लोग पति की उम्र को नजरअंदाज करते हैं। जैसे-जैसे पति की उम्र 45 वर्ष के बाद बढ़ती है तो शुक्राणु की गुणवत्ता और मात्रा कम हो जाती है उसी प्रकार महिला की उम्र 35 वर्ष से ऊपर होने पर अंडों की संख्या और गुणवत्ता कम होती जाती है। इच्छुक महिला के शरीर में हार्मोन का स्तर के असंतुलन की वजह से अंडाशय के अंडों की क्वालिटी और अंडों की संख्या पर असर पड़ता है। यह सफल आईवीएफ की संभावना को प्रभावित करता है।भागदौड़ की जिंदगी और टेंशन लेने पर भी इस पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। साथ ही लाइफस्टाइल बेवजह परेशान रहना अनियमित तरीके से खानपान और दिनचर्या का भी इस पर असर पड़ता है। मोटापे की वजह से अंडे की गुणवत्ता में कमी होना भी इसमें शामिल है।
भ्रूण प्रत्यारोपण गुणवत्ता
आईवीएफ विफल होने का मुख्य कारण भ्रूण का गर्भाशय की अंदरूनी परत से नहीं जुड़ना है। भ्रूण को प्रत्यारोपित करने में विफलता या तो भ्रूण की समस्या या गर्भाशय की समस्या के कारण हो सकती है। दरअसल ज्यादातर मामलों में, प्रजनन प्रक्रिया में शामिल डॉक्टर भ्रूण के विकास में कमी के लिए ट्रांसप्लांट की विफलता को दोष देते हैं। जबकि कई भ्रूण पांच दिनों से पहले विकसित होते हैं और खत्म हो जाते हैं। लेकिन जो भ्रूण पहले कुछ दिनों तक जीवित और स्वस्थ दिखाई देते हैं, वे भी गर्भाशय में प्रत्यारोपित होने के बाद किसी समय मर जाते हैं।अगर एंब्रायो की गुणवत्ता अच्छी ना हो तो वह गर्भाशय में अच्छे से इंप्लांट नहीं हो पाता है। या फिर अगर ब्लास्टोसिस्ट (Blastocyst) की स्टेज से पहले ही भ्रूण को ट्रांसफर किया जाता है तो आईवीएफ के फेल होने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है।
गर्भाशय या बच्चेदानी
आईवीएफ करने से पहले बच्चेदानी की अंदरूनी जांच (हिस्ट्रोस्कोपी)जरूरी होती है। कई बार हिस्ट्रोस्कोपी ना होने की वजह से बच्चेदानी से जुड़ी समस्याओं का पता नहीं चल पाता, जैसे बच्चेदानी का वह स्थान जहां भ्रूण स्थानांतरण के बाद चिपकता है सही है या नहीं। बच्चेदानी की टी . बी. की जांच जरूरी है। बच्चेदानी में सिस्ट होने पर उसे हटाना अनिवार्य होता है।
एफएसएच यानी कि फॉलिकल स्टिमुलेटिंग हार्मोन लेवल
शुरुआत में(FSH) फर्टिलिटी हार्मोन का इंजेक्शन लगाने की आवश्यकता होती है, जिसका उद्देश्य अंडे का उत्पादन बढ़ाना है। कुछ महिलाओं के अंडाशय इस दवा के प्रति सही प्रतिक्रिया नहीं देते हैं और इस प्रकार संग्रह के लिए कई अंडे का उत्पादन करने में विफल होते हैं। एफएसएच यानी कि फॉलिकल स्टिमुलेटिंग हार्मोन का स्तर ज्यादा होने से भी आईवीएफ का सक्सेस रेट काफी घट जाता है।
क्रोमोसोमल असामान्यताएँ
दंपत्ति में से किसी एक या फिर दोनों के क्रोमोसोम्स में असमान्यता होने से भी आईवीएफ चिकित्सा के नकारात्मक परिणाम देखे जा सकते हैं।
तनाव
किसी भी प्रकार का तनाव होने से भ्रूण पर विपरीत प्रभाव पड़ता हैं |अगरमहिला अन्य प्रकार की मानसिक परेशानी से जूझ रही है तो भी आईवीएफ के सफल होने की संभावना कम हो जाती है।
जीवन शैली
आजकल की जो जीवन शैली हैं अस्त व्यस्त लापरवाह जीवनशैली भी आई वी ऍफ़ के विफल होने का मुख्य कारण हैं | महिला का ज्यादा वजन भी मायने रखता हैं |
एलर्जी
दंपत्ति में से किसी को भी अस्थमा, एलर्जी ऑटोइन्फ्लेमेटरी या इम्यूनोलॉजिकल डिसऑर्डर होने की स्थिति में भी भ्रूण ठीक से प्रत्यारोपित नहीं हो पाता।